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Game Changer साबित होगा खालिस्तानी अमृतपाल सिंह का खडूर साहिब से चुनाव लड़ना : पढे किस राजनीतिक पार्टी को मिला मौका, किसको लगा झटका और किसकी क्या मज़बूरी

जालंधर (योगेश सूरी) : जेल में बंद अमृतपाल सिंह द्वारा पंजाब की खडूर साहिब सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा ने इस सीट पर सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के समीकरण बदल कर रख दिए है l खालिस्तान समर्थक अमृतपाल के इस कदम को पंजाब की राजनीति में गेमचेंजर के रूप में देखा जा रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत आरोपों का सामना कर रहे और करीब एक साल से असम के डिब्रूगढ़ की जेल में कैद अमृतपाल की मां ने यह घोषणा 26 अप्रेल को उससे मुलाकात करने के बाद की है l अब बात करते है की अमृतपाल सिंह का फैसला इतना अहम क्यों है और इसे खडूर साहिब सीट पर गेम चेंजर के रुप में क्यों देखा जा रहा है l अमृतपाल सिंह हमेशा खालिस्तान के नाम पर अलग सिख-राज की मांग पर पंजाब के लोगों को उकसाता रहा है l इसलिए, माना जा रहा है कि भारतीय संविधान के तहत चुनाव लड़ना महत्वपूर्ण घटना है l हालांकि, अमृतपाल चुनाव लड़ने वाला पहला खालिस्तान समर्थक नेता नहीं हैं l संगरूर से वर्तमान सांसद सिमरनजीत सिंह मान का भी कहना है कि वह “अहिंसक” और संवैधानिक तरीकों का उपयोग करके “खालिस्तान के लिए प्रयास” कर रहा हैं l अगर अमृतपाल सिंह जीतता है तो उसे भी भारतीय संविधान के तहत शपथ लेनी होगी जैसे मान ने तीन बार चुने जाने के बाद ली थी l जिससे अमृतपाल उन कट्टरपंथी संगठनों से अलग हो जाएगा जो खालिस्तान की मांग को लेकर अहिंसा का रास्ता अपनाए हुए हैं और चुनावी राजनीति से दूर रहते हैं l यह उसे खालिस्तान समर्थन को लेकर 2020 जनमत संग्रह समूह से भी अलग कर देगा, जिससे ज्यादातर प्रवासी भारतीय जुड़े हैं और जिसका नेतृत्व सिख फॉर जस्टिस द्वारा किया जाता है l पूरे परिदृश्य का गहन अध्ययन किया जाए तो अमृतपाल सिंह एक तरह से सिमरनजीत सिंह मान की राह पर चलता हुआ ही दिखाई दे रहा है lखालिस्तान समर्थक मान ने भी जेल से 1989 का लोकसभा चुनाव लड़ा था l अभी अमृतपाल सिंह को पंजाब से दूर असम में कैद किया गया है, सिमरनजीत सिंह मान को बिहार के भागलपुर में 5 साल जेल में बिताना पड़ा थाlअब विचार किया जाए की अमृतपाल ने खडूर साहिब को ही क्यों चुना तो स्पष्ट है की अमृतपाल का गांव जल्लूपुर खेड़ा अमृतसर जिले की बाबा बकाला तहसील में पड़ता है l यह खडूर साहिब लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है l लेकिन यही एकमात्र कारण नहीं है l क्योंकि खडूर साहिब को पंथक सीट के रूप में भी जाना जाता है l पंजाब की अन्य सभी सीटों की तुलना में खडूर साहिब में सिख धर्म-राजनीति का प्रभाव सबसे अधिक हैlसिमरनजीत सिंह मान ने 1989 का चुनाव भी तरनतारन सीट से जीता थाl हालांकि परिसीमन के बाद इस सीट का अस्तित्व समाप्त हो गया था और इसका अधिकांश क्षेत्र अब नव निर्मित खडूर साहिब सीट के अंतर्गत आ गए हैं lपंथक सीट होने के कारण यह सीट शिरोमणि अकाली दल का गढ़ रही है l कांग्रेस ने पिछले 50 सालों में केवल दो बार ये सीट जीती है lइस वर्चस्व का कारण जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक स्थिति) भी है l यह पंजाब की ग्रामीण लोकसभा सीट है और सबसे अधिक सिख बहुमत वाली सीट भी है l

अब बात करते है अमृतपाल सिंह की एंट्री का मौजूदा राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों पर क्या असर पड़ेगा?
अमृतपाल सिंह की एंट्री से शिरोमणी अकाली दल (बादल), सिमरनजीत मान की अकाली दल (अमृतसर), कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बीजेपी पर अलग-अळग तरीके से असर पड़ेगा l

पहले शिरोमणी अकाली दल (बादल) की बात करे तो पंथक एकता के लिए अब सुखबीर बादल को अमृतपाल सिंह का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता हैl शिअद ने अभी तक खडूर साहिब से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया हैl वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया और विरसा सिंह वल्टोहा के नाम चर्चा में थे lअब इसकी संभावना कम ही है कि अकाली दल अमृतपाल सिंह के खिलाफ कोई मजबूत उम्मीदवार उतारेगा।  क्योंकि SAD अगर अमृपाल के खिलाफ उम्मीदवार उतारेगी तो उनपर पंथक हित को धोखा देने का आरोप लगाया जा सकता है, एक ऐसा टैग जिसे वह 2015 के बेअदबी मामलों के बाद से हटाने की कोशिश कर रहे हैं। बल्कि संभवानएं तो ये हैं कि अकाली दल इस सीट पर अमृतपाल सिंह को समर्थन दे सकता है l अकाली दल वैसे भी अमृतपाल के मैदान में रहते हुए जीत नहीं पाता, इसलिए पार्टी के लिए सबसे अच्छा विकल्प अमृतपाल का समर्थन करके पंथक मतदाताओं के बीच कुछ सद्भावना हासिल करना होगा lइससे संभवतः पार्टी को अन्य सीटों पर मदद मिल सकती है।

शिरोमणी अकाली दल (अमृतसर) की बात करे तो सुखबीर बादल की तरह सिमरनजीत मान भी अमृतपाल सिंह की उम्मीदवारी को समर्थन देने के लिए मजबूर हो सकते हैं l उनकी पार्टी ने पहले ही खडूर साहिब से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था lअब उन्हें उम्मीदवार वापस लेना पड़ सकता है l मान ने अब तक अमृतपाल सिंह के पक्ष में बोला है, लेकिन यह देखना बाकी है कि अमृतपाल के राजनीति में उतरने के बाद समीकरण बदलते हैं या नहीं। यह संभव है कि अमृतपाल की एंट्री से इस चुनाव में शिअद (अमृतसर) के अधिक प्रमुख उम्मीदवारों जैसे कि संगरूर में सिमरनजीत मान और बठिंडा में लाखा सिधाना के बीच कुछ बदलाव पैदा हो सकता है lऔर सबसे बड़ी बात है का अमृतपाल सिंह का सहयोगी पपलप्रीत सिंह भी सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी से जुड़ा हुआ था l

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की बात करे तो कांग्रेस के लिए, यह एक अलग तरह की दुविधा होगी- एक मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाए या एक कमजोर उम्मीदवार को। अब तक कपूरथला के विधायक राणा गुरजीत सिंह, उनके बेटे और सुल्तानपुर लोधी के विधायक राणा इंद्र प्रताप और खडूर साहिब के पूर्व विधायक रमनजीत सिक्की के नाम चर्चा में थे l AAP तो पहले ही मंत्री लालजीत भुल्लर को मैदान में उतार चुकी हैl AAP और कांग्रेस दोनों ही इस सीट पर दलित और हिंदू मतदाताओं पर काफी हद तक निर्भर रहेंगे। इसलिए कांग्रेस राणा गुरजीत जैसे मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारती है, इससे अमृतपाल विरोधी वोट बंटने का खतरा रहता है l सिमरनजीत मान की सीट संगरूर में कांग्रेस ने बड़ी चतुराई से अपने सबसे पंथ समर्थक चेहरे सुखपाल सिंह खैरा को मैदान में उतारा है l कुछ लोगों का कहना है कि यह मान को नुकसान पहुंचाने और AAP की मदद करने का एक तरीका है जो दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ और गुजरात में कांग्रेस की सहयोगी है लेकिन पंजाब में उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी है।

भाजपा की बात करे तो बीजेपी के लिए अमृतपाल का चुनाव लड़ना मौका भी है और जोखिम भी lपार्टी का आकलन है कि यह कदम शहरी हिंदू मतदाताओं को बीजेपी की ओर धकेल सकता है। पंजाब अभियान में शामिल एक बीजेपी पदाधिकारी ने द क्विंट को बताया कि, “यह एक राष्ट्रीय चुनाव है. इन जैसी ताकतों के सिर उठाने के साथ, पंजाब के लोग- सिर्फ हिंदू ही नहीं- पीएम नरेंद्र मोदी को एकमात्र ऐसे व्यक्ति के रूप में देखेंगे जो सुरक्षा की गारंटी दे सकते हैं।” हालांकि, बीजेपी को अभी भी ग्रामीण सिख मतदाताओं के बीच कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है और अमृतपाल के उभरने से इस वर्ग और पार्टी के बीच दूरी बढ़ने की ही संभावना है।

अब अंत में स्वयं खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की बात करे तो उसके समर्थकों को 2023 में अजनाला थाना हिंसा के बाद वारिस पंजाब दे को बड़े पैमाने पर कार्रवाई का सामना करना पड़ा l अमृतपाल सिंह और उनकी कोर टीम के कई लोग जेल में हैं और कई अन्य समर्थक निष्क्रिय हो गए हैं। चुनावी मैदान में उतरकर, अमृतपाल सिंह अपने समर्थकों को एकजुट होने और उन मुद्दों को उठाने का मंच दे सकता है – जिसकी बात अमृतपाल खुद करता है, जैसे- सिख पहचान, नशीली दवाओं का खतरा और ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां।  इस कदम को उसके आंदोलन को पुनर्जीवित करने और जमीन पर अपनी ताकत दिखाने के साधन के रूप में भी देखा जा सकता है। हालांकि, अमृतपाल सिंह के आलोचकों का कहना है कि उसकी गिरफ्तारी के बाद बड़े पैमाने पर कोई विरोध प्रदर्शन नहीं होने से पता चलता है कि उसकी लोकप्रियता सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित थी। खडूर साहिब चुनाव को अमृतपाल सिंह के लिए जमीन पर अपना समर्थन दिखाने के एक साधन के रूप में देखा जा रहा है। अगले कुछ दिनों में कांग्रेस और अकाली दल के उम्मीदवारों की घोषणाओं पर नजर रहेगी।

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