26वीं पुण्यतिथि पर विशेष प्रस्तुति : कर्मठ, सहृदय प्रेरक व बहुमुखी प्रतिभावान पत्रकार थे ‘पं. आज्ञा राम प्रेम’ ; उनके लिखे कई लेखों पर संसद तथा विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाए गए थे
देवभूमि हिमाचल ने कुछ उन गिने-चुने महान सपूतों को पैदा किया है जिन्होंने समाज के प्रत्येक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर न केवल अपनी माटी को गौरवान्वित किया अपितु समाज को नई दिशा देने का बीड़ा भी अपने कंधों पर उठाया जिसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं। भले ही यह महान पुरुष आज इस संसार में नहीं हैं लेकिन उनकी स्मृतियां मानस पटल पर कायम हैं और युगों-युगों तक रहेंगी। ऐसी ही एक विभूति का नाम है पंडित आज्ञा राम प्रेम। इस नाम का स्मरण होते ही एकाएक ध्यान कलम की तरफ चला जाता है क्योंकि कलम के धनी पंडित जी ने अपनी कलम के बलबूते पर न केवल इस समाज की सेवा की अपितु इस सदमार्ग पर चलने के लिये अनेक युवाओं का सहारा एवं मार्गदर्शक भी बने। कठिन परिस्थितियों से जूझ कर पंडित जी ने जो स्थान हासिल किया वह उनकी योग्यता का एक उत्तम उदाहरण माना जा सकता है। उन्होंने पत्रकारिता की लम्बी यात्रा में परम्परागत लक्ष्यों की तरफ निरंतर चलना ही पर्याप्त नहीं माना बल्कि अन्य युवाओं को भी पूर्ण जागरूकता के साथ इस दिशा में चलने के योग्य बनाना अपना कर्तव्य समझा। आज देश के विभिन्न समाचार पत्रों में सेवा कर रहे ऐसे असंख्य लोग उनकी ही देन हैं। देवभुमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में देहरा गोपीपुर तहसील के गांव बठरा में 18 जुलाई 1937 को जन्मे श्री आज्ञा राम प्रेम का जीवन सतत्ï संघर्षों के थपेड़े सहने वाले एक सामान्य व्यक्ति की जीवट कहानी है। वे एक अत्यन्त संवेदनशील, सहृदय लेखक एवं रचनाकार रहे। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र मेें ‘पत्रकार’ नामक पुस्तक का लेखन-सम्पादन करके इस क्षेत्र के पत्रकारों को एक नई राह, तकनीक और लेखन विधि सिखाने का शानदार प्रयास किया। वह पंजाब और हिमाचल प्रदेश के संभवत: प्रथम ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने पत्रकारिता में सचित्र फीचर लेखन की परम्परा को शुरू किया।
गरीब की कुटिया में जा कर उसके अनुभव को आधार बना कर जनसाधारण की सामान्य दुर्दशा व व्यथा को अपनी स्टीक लेखनी एवं टिप्पणियों में संजोकर समाचार पत्रों के माध्यम से समाज में पहुंचा कर लाखों लोगों को आन्दोलित किया। बचपन से ही अध्ययनशील प्रवृति के पंडित जी ने गांव मेें 14 से 16 घंटे तक काम करते रहने के बावजूद अपनी पढ़ाई के लिये समय निकाला व उच्च शिक्षा हासिल की। समय के साथ कुछ विद्वानों के प्रभाव में आने पर अमृतसर आ गये, जहां पढ़ाई के साथ साथ उन्होंने अपने पांवों पर खड़े होने के लिए अध्यापन का सिलसिला शुरू किया। 1964 में वे ‘दैनिक वीरप्रताप’ तथा ‘दैनिक वीर अर्जुन’ (दिल्ली) के अमृतसर संवाददाता बनने के साथ ही पत्रकारिता के क्षेत्र में पर्दापण कर गये। 1965 के भारत-पाक युद्घ मेें सीमा क्षेत्र में जा कर युद्घ संवाददाता के रूप में कार्य को बखूबी निभाया। 1966 में वे धर्मशाला चले गये तथा वहां दैनिक हिन्दी व उर्दू मिलाप, दैनिक पंजाब केसरी व हिन्द समाचार पत्र तथा आकाशवाणी शिमला, जालन्धर के संवाददाता के रूप में कार्यरत रहे। अंतत: वे पंजाब केसरी में उप-सम्पादक के रूप में नियुक्त हुए और अपनी लग्न एवं परिश्रम से समाचार सम्पादक के पद से सेवानिवृत हुए। इस बीच धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, नवनीत, दिनमान, योजना, रविवार, कुरुक्षेत्र, हरियाणा संवाद तथा हिमप्रस्थ, उर्दू प्रताप, हिन्द समाचार, तेज, अजीत, पंजाबी डाइजेस्ट आदि पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर उनके सैंकड़ों लेख समय-समय पर प्रकाशित हुए। उनके कई लेख देश की अन्य भाषाई तथा विदेशी पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए। जम्मू, जालन्धर व शिमला रेडिया पर उनकी वार्ताएं तथा जालन्धर दूरदर्शन पर उनके नाटक प्रसारित हुए। युद्घ विधवाओं के बारे में लिखे गये उनके सचित्र मार्मिक लेख ने सारे देश को ही झकझोर कर रख दिया था। उनके द्वारा धर्मयुग व साप्ताहिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित कुछ लेखों पर संसद तथा विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव भी लाए गए थे। स्वर्गीय आज्ञा राम प्रेम ने अपने लेखों का एक संग्रह ‘आदर्श निबंध’ बाल कहानियों का संग्रह ‘अमर दीप’ पुस्तकें भी लिखीं। उन्होंने पत्रकारिता में आने के इच्छुक व कार्यरत युवाओं के मार्ग दर्शन के लिये ‘पत्रकार’ पुस्तक भी लिखी। उस समय तक हिन्दी में पत्रकारिता के सम्बन्ध में इतनी सर्वांगीण जानकारी देने वाली कोई पुस्तक नहीं थी। यह पुस्तकेें ऐसे समय लिखी गईं जबकि पुस्तकों का प्रकाशन एक टेड़ी खीर थी। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिये 1982 में उन्हें प्रतिष्ठिïत ‘मातृश्री पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 1995-96 में जालन्धर टैलीफोन एडवाइजरी कमेटी के सदस्य के रूप में शामिल किये गए। वे हिमाचल प्रदेश में चिंतपूर्णी मंदिर में लम्बे समय तक ट्रस्टी भी रहे। पत्रकारिता के साथ साथ वे समाज सेवा कार्यो में भी सक्रिय रहे। वे उस माटी को कदापि नहीं भूले, जिसमें वे खेल कूद कर बड़े हुए। अपने गांव बठरा में आठवीं उतीर्ण करने के बाद एक स्कूल की स्थापना करवाई, जो आज वट वृक्ष का रूप धारण कर असंख्य बच्चों को 10+2 तक की शिक्षा प्रदान कर रहा है। गांव में डाकघर, डिस्पैंसरी तथा सडक़ का निर्माण करवाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्हीं के निस्वार्थ प्रयासों का परिणाम था कि आज इस मार्ग पर एक दर्जन बसें आती जाती हैं। पत्रकारिता के दौरान ही वे अनेक राजनीतिज्ञों के सम्पर्क में आए, जिन्होंने उनकी स्पष्टïवादिता का लोहा माना। हिमाचल प्रदेश के होने के कारण वे प्रदेश की राजनीति में गहन रुचि लेते रहे। राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के सिद्घान्तों में उनकी विशेष रूचि थी। अन्तिम समय तक वह अपनी अस्वस्थता के बावजूद पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहने की कोशिश करते रहे। अपने अनुभवों व लम्बी पत्रकारिता के आधार पर वे देश की भावी पीढ़ी को एक नई दिशा देना चाहते थे। ऐसा ही सपना उन्होंने अपने सेवानिवृत होने के उपरान्त संजोया था, लेकिन इस सपने के साकार होने से पूर्व ही वे आज ही के दिन 13 जनवरी 1998 में इस नश्वर संसार से चले गये और शेष रह गई उनकी यादें……… केवल यादें! उनके आकस्मिक निधन से उतरी भारत में पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया तथा समाचार-पत्र जगत ने एक अनुभवी व तपे हुए पत्रकार को खो दिया। आज इस अवसर पर उन्हें प्रणाम है।