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विश्व प्रसिद्ध श्री सिद्ध बाबा सोढल मेले पर विशेष : आस्था के केंद्र श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर पर राहुल बाहरी की विशेष प्रस्तुति

28 सितम्बर को अंनत चौदस के दिन विश्व प्रसिद्ध श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला बहुत धूम-धाम व श्रद्धा से मनाया जा रहा है, जिसे लेकर देश-विदेश में रहने वाले लोगो में भारी उत्साह पाया जा रहा है। मान्यता है कि अनंत चौदस के दिन जो भी श्रद्धालु सच्चे दिल से श्री सिद्ध बाबा सोढल जी के दरबार में नतमस्तक होता है, बाबा जी उसकी हर मनोकामना पूरी करते है। श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर महानगर जालंधर के इतिहास का अभिन्न अंग है। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अनंत चौदस को यहां हर वर्ष भव्य मेला लगता है।विश्व विख्यात श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है। चड्ढा बिरादरी और आनंद बिरादरी के साथ इस मंदिर का इतिहास जुड़ा है। प्राचीन समय में श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का जहां मंदिर स्थापित है उस स्थान पर एक संत जी की कुटिया और सुंदर तालाब था। यह तालाब अब सूख चुका है, परन्तु उस समय पानी से भरा रहता था। संत जी महादेव भगवान शिव के परम भक्त थे। जनमानस उनके पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आया करते थे। चड्ढा परिवार की बहू जोकि संत जी की भक्त थी। वह हमेशा उदास ही रहती थी। एक दिन संत जी ने पूछा कि बेटी तू इतनी उदास क्यों रहती है? मुझे बता मै महादेव से प्रार्थना करूंगा और महादेव तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे। संत जी की बात सुनकर उन्होंने कहा कि मेरी कोई संतान नहीं है और संतानहीन स्त्री का जीवन नर्क भोगने के समान होता है। संत जी ने कुछ सोचा फिर बोले, बेटी तेरे भाग्य में तो संतान सुख है ही नहीं। मगर तुम महादेव जी पर विश्वास रखो वह अवश्य ही तुम्हारी गोद भरेंगे। संत जी ने भगवान् से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को ऐसा पुत्र रत्न दीजिए जो संसार में आकर भक्ति व सनातन धर्म पर चलने का संदेश व प्रेरणा दे। भगवान शिव ने नाग देवता को चड्ढा परिवार की बहू की कोख से जन्म लेने का आदेश दिया। नौ महीने के उपरांत चड्ढा परिवार में बाबा सोढल जी का जन्म हुआ। जब बाबा सोढल जी चार वर्ष के थे तब वह एक दिन अपनी माता के साथ कपड़े धोने के लिए तालाब पर आएं। तभी वह भूख से विचलित हो रहा थे और अपनी माता से घर चलकर खाना बनाने को कहने लगे मगर माता तालाब के पास कुछ काम कर रहे थे। माता जी काम छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी तब बालक सोढल जी ने कुछ देर इंतजार करके तालाब में छलांग लगा दी तथा आंखों से ओझल हो गए। बाबा जी के छलांग लगाने के बाद मां बहुत रोने लगी। अपनी माता को ज्यादा रोता हुआ देखकर बाबा सोढल जी नाग रूप में तालाब से बाहर आए तथा धर्म एवं भक्ति का संदेश दिया और कहा कि जो भी मेरा सच्चे ह्रदय से पूजन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। ऐसा कहकर नाग देवता के रूप में बाबा सोढल फिर तालाब में समा गए। बाबा जी के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा और विश्वास बन गया। कालांतर में एक कच्ची दीवार में श्री सिद्ध बाबा सोढल जी की मूर्ति स्थापित की गई जिसको बाद में मंदिर का स्वरूप दे दिया गया। भाद्रपद की अनन्त चतुर्दशी को मंदिर में भव्य मेला लगता है, जिसमे देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते है और बाबा जी के मंदिर में माथा टेकते है। श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर में हर धर्म व समुदाय के लोग नतमस्तक होते हैं। अपनी मन्नत की पूर्ति होने पर लोग बैंड-बाजों के साथ बाबा जी के दरबार में आते हैं। बाबा जी को भेंट व 14 रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं, जिसमें से 7 रोट प्रसाद के रूप में वापिस मिल जाते हैं। इस प्रसाद को चड्ढा परिवार के घर की बेटी तो खा सकती है परन्तु उसके पति व बच्चो को देना वर्जित है। अनंत चौदस के दिन मनाए जाते श्री सिद्ध बाबा सोढल मेले के साथ घर में खेत्री की बिजाई की परंपरा दशकों से बरकरार है, केवल चड्ढा बिरादरी ही नहीं बल्कि यहां पर मन्नतें पूरी होने पर हर धर्म व वर्ग के लोग नवरात्र की तरह घर में खेत्री की बिजाई कर मेले वाले दिन यहां पर पूजन करने के लिए आते हैं। वर्तमान में यह मंदिर सोढल रोड पर विद्यमान है। अनंत चतुर्दशी पर जगत के पालनहार लक्ष्मीपति भगवान विष्णु जी की भी पूजा की जाती है।इस वर्ष श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला 28 सितम्बर 2023 दिन वीरवार को बड़ी श्रद्धा व धूम–धाम से मनाया जा रहा है। वही श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर की सेवा को जीवन के 50 वर्ष से अधिक साल समर्पित करने वाले स्व. श्री आज्ञापाल चड्ढा के सहयोग को भी जीवनभर याद किया जाता रहेगा।

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